मंगलवार, 29 नवंबर 2011

वाह ताज, आह इंडिया!


कहा जाता है दुनिया में दो तरह के लोग हैं- एक जिन्होंने ताजमहल देखा है, दूसरे जिन्होंने ताजमहल नहीं देखा। सचमुच ताज की खूबसूरती अवर्णनीय है, यह हम क्या पूरी दुनिया मानती है। पिछले दिनों एक शादी में आगरा जाना हुआ। आगरा जाएँ और ताज देखें ऐसा कैसे हो सकता है। अत: एक बार नहीं बार-बार ताज देखने गए। एक बार दिन में भीड़-भाड़ के समय, सामने की ओर से ताज देखा और लंबी कतार में लगकर मकबरे तक पहुँचे। फिर एक दिन दोपहर को यमुना पार, पीछे की ओर से ताज को नए कोण से देखा, एक मुगल गार्डन में जाकर, जहाँ विद्रोही औरंगजेब ने पिता शाहजहाँ के सफेद झक ताज के जवाब में काला ताज बनाने की शुरुआत की थी। आगरा के लाल किले में जाकर उस जगह से भी ताज देखा, जहाँ औरंगजेब ने शाहजहाँ को कैद किया था और जहाँ से कैदी शाहजहाँ रोज ताज के दीदार करते थे। मगर एक चीज छूट रही थी। कहते हैं पूरनमासी की रात को चाँदनी में नहाए ताज को देखना अपने आप में अपूर्व अनुभव है। रात्रि दर्शन के लिए ताजमहल सिर्फ पूरनमासी के ही दिन खुला रहता है। बाकी समय रात में बंद रहता है। हम तो सिर्फ चौदहवीं की रात वहाँ थे, पूरनमासी की दोपहर तो वहाँ से लौट आना था। सुप्रीम कोर्ट की हिदायत के कारण आगरा प्रशासन इस मामले में सख्त है। उसे होना भी चाहिए, क्योंकि ताज की सुरक्षा का सवाल है। खैर, चौदहवीं की चाँदनी में नहाया ताज देखने का तरीका हमने खोजा। आगरा की बस्ती में कुछ घर और कुछ होटल ऐसे हैं, जिनकी छत से ताज दिखता है। ऐसी ही एक होटल की छत पर हमने जाने की व्यवस्था की। इस होटल में बहुत से विदेशी ठहरे थे। इसकी छत पर एक खुला रेस्टॉरेंट था। एक-दो विदेशी तो ऐसे थे, जो ऐसी जगह बैठे थे, जहाँ से ताज को एकटक निहार सकें। ऐसा ही एक विदेशी ताजमहल के सामने भी हमने देखा था, जो घंटों से बैठा ताज की तरफ एकटक देखे जा रहा था, मंत्रमुग्ध होकर। इन्हें देखकर अपनी ऐतिहासिक विरासत पर गर्व हुआ। मगर यह गर्व अधिक नहीं टिक पाया। दूसरे दिन आगरा घूमने निकले। आगरा की सड़कों पर इतना अव्यवस्थित यातायात और इतनी गंदगी है कि यहाँ आपको कोई विदेशी दिखेंगे तो नाक पर रूमाल बाँधे, गंदगी से बचते-बचाते चलते मिलेंगे। आगरा की गलियाँ और यमुना नदी तो गंदी है ही, जिसके किनारे भैंसों के तबेले हैं। आगरा फोर्ट में भी एक-दो जगह पान की पीक दिखाई दी। गाइड से पूछा, यह कैसे हुआ, तो उसने बताया कि भीतर घुसने वाले दर्शकों की तो जाँच कर ली जाती है, मगर रेड फोर्ट के सरकारी कर्मचारी ही कई बार खुद गुटखा लेकर भीतर चले जाते हैं! अंदर घुसने वालों की जाँच में भी कई बार ढील-पोल होती है। सच तो यह है कि हम जिस गाड़ी में घूमने निकले थे उसका ड्रायवर भी बार-बार खिड़की से मुँह निकालकर पच्च-पच्च पीक थूकता था। मना करो तो अपनी पान में बदरंग खीसें निपोरकर बेशर्मी से हँस देता था। यह सब देखकर यह मानने पर मजबूर होना पड़ता है कि हम हिन्दुस्तानियों का नागरिकता-बोध कितना कमजोर है। यह आगरा शहर की ही बात नहीं है, भारत के गाँव-गाँव और शहर-शहर में गंदगी और फूहड़पन का साम्राज्य है। हिन्दुस्तानी पालक और शिक्षक खुद भी किसी सार्वजनिक सफाई व्यवस्था का ध्यान नहीं रखते और ही माता-पिता अपनी संतति को यह संस्कार देने का कोई प्रयास करते हैं। यदि कार में किसी बच्चे ने चॉकलेट खाया, तो माँ फट से खिड़की खोलकर, सड़क पर रैपर फेंक देगी। इसे सम्हालकर बाद में कचरा पेटी में डालना है यह करने और बच्चे को यह सिखाने का कष्ट हिन्दुस्तान में बहुत कम लोग करते हैं। नतीजा होता है विदेशियों के सामने शर्मिंदगी और हमारे अपने स्वास्थ्य को लगातार संकट। हमारा देश पहले ही गर्म जलवायु देश है ऊपर से इतनी गंदगी है, अत: यह वातावरण की गंदगी से फैलने वाली महामारियों का देश भी हो गया है। आखिर कब हम यह समझेंगे?

निर्मला भुराड़िया

2 टिप्‍पणियां:

  1. You are absolutely correct. And the worst part is if we try to politely try to stop someone, the standard reply we get "aree bada angreez baan raha hai"... and feeling embarrassed and ashamed is worse when you are in foreign land and people talk about India and "Indian-attitude", you just have to look down and hear it all. I remember one such incident few years back when I was in Singapore and was watching news with few american and Chinese friends, in the world section they showed a glimpse of Indian parliament, the one where the MPs were throwing footwear, mike, books at each other, slapping each other.... you cannot even imagine the level of embarresment I had to face. The only problem with us is "chalta-hai" attituide.. throw the choclate wrapper.. "aree ek baar chalta hai yaar".

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