शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

हैलो हैप्पीनेस!

दादी खरीद लाईं पट्‌टी-पहाड़ा, दादाजी ने डाला नीबू का अचार! है न, यह खबरों की खरब! पर इसे कवर करने कोई टी.वी. वाला नहीं आएगा। आए भी क्यों खबर तो यूँ ही बन जाएगी क्योंकि दादी अब सब्जी वाले का हिसाब राउंड-फिगर्स में नहीं देने वाली और दादाजी कॉलोनी में अपना बनाया नीबू का अचार बॉंटने वाले हैं। हॉं यह पता करने के लिए "स्टिंग ऑपरेशन' की जरूरत अवश्य पड़ सकती है कि इन्हें यह शौक चर्राया क्यों? तो चलिए अपने शब्दों का कैमरा इनके पीछे लगा देते हैं। और जानते हैं माजरा क्या है?

दरअसल दादी शब्द से आपके दिमाग के स्क्रीन पर सिर पर पल्लू लिए, भाल पर बिंदी, कोथमिर में से हरी मिर्च छॉंटती महिला न हीं आना चाहिए। यह तो इनकी भी सास की छबि थी। हमारी यह दादी उससे आगे की पीढ़ी की है। बी.ए. पास है। इन्होंने पल्लू उलट लिया है। ये उलटा पल्लू पहनती हैं, बालों को ट्रिम भी करवाती हैं, पोते को नर्सरी राइम्स भी रटवाती हैं। खैर... बात हो रही है पट्‌टी-पहाड़ा की। पट्‌टी-पहाड़ा जानते हैं! पहाड़े की किताब। दादी जब किशोरावस्था में थीं उनके बाबूजी हमेशा ताकीद करते थे, इस किताब में से पहाड़े रटने की। उनकी गणित अध्यापिका भी पहाड़े न रटने वाली लड़कियों को सजा देती थीं। मगर हुशियार दादी (जो उस वक्त दादी बिलकुल नहीं थीं) गुणा-भाग करके पहाड़ा तैयार कर लेती थीं और उसे मुखाग्र करने से बच जाती थीं। मगर इस उम्र में उन्होंने पढ़ा इंसानी दिमाग में मौजूत अलग-अलग गलियारों के बारे में। उन्होंने पढ़ा कि अब तक सूने पड़ा रास्तों पर दिमाग को दौड़ाया जाए तो जीवन में नवीनता आती है और बस उन्हें याद आ गई अपने गुजरे हुए बाबूजी की ताकीद। गजब है दादी को अब पहाड़े याद करने में मजा आ रहा है। वे अब धोबी की डायरी और आलू-प्याज वाले के हिसाब-किताब में भी आनंद ले रही हैं। क्योंकि यह मामूली क्रिया भी उनको कुछ नया करने का सुख दे रही है। ठीक यही कारण है जिससे कि नामी चिकित्सक दादा भी नीबू का अचार डाल रहे हैं। दादा और किचनसेवी? कभी नहीं! उन्हें तो जीवन में कभी अचार खाने की ही फुर्सत नहीं मिली अचार डालना तो दूर की बात है। मगर आज जब उन्होंने अचार डालने का मन मनाया तो उन्हें अलग ही किस्म का मजा आया। ऐसा मजा जो हमेशा एक जैसी होने वाली पार्टियों में भी नहीं आता।

इसी तरह के और भी लोग आजकल देखने को मिलते हैं, जो फिफ्टी प्लस या सिक्सटी प्लस पर नई स्किल्स सीखते हैं। मामूली लेकिन जरा हटके किए गए कामों का मजा लेते हैं। और हॅंसकर कहते हैं- हैलो हैप्पीनेस।

- निर्मला भुराड़िया

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