सोमवार, 5 जुलाई 2010

जरा सोच-समझकर बोलना महाराज!

अपनी बात

योरपीय संघ में भविष्यवाणी करने वाले लोग उपभोक्ता संरक्षण कानूनों के दायरे में जाएँगे। इससे उन्हें अपने कथन की जिम्मेदारी भी लेना होगी। किसी का दावा गलत निकला तो जजमान कोर्ट में भी जा सकेगा! भारत में यह दिन दूर है। या कहें दूर-दूर तक ऐसी कोई योजना नहीं है कि 'फेंक-फाँक' को व्यवसाय बनाने वाले बाज आएँ। अत: हमारे यहाँ अटकल बाजी को बाजार बनाने वालों की जमात मौजूद है। वो भी कई रूपों में। कोई कपाल पर भविष्य पढ़ता है, कोई हथेली में, कोई कुंडली में, तो कोई लक्षणों में। भारतीय पद्धतियों के साथ ही,हमारे यहाँ भविष्य आकलन की कई विदेशी पद्धतियाँ भी चल पड़ी हैं। टैरट कार्ड, फेंगशुई, रुन्स, क्रिस्टल बॉल वगैरह-वगैरह। यह सिर्फ मन बहलाव का ही साधन होता तो भी समझ लिया जाता कि भई ठीक है, अपनी-अपनी मान्यता या समझ है। परंतु फेंक-फाँक अधिकाधिक भारतीयों को निकम्मा बना रही है और भाग्य-निर्भर भी। इससे भी बड़ी मुश्किल तो यह है कि भविष्य बताने, फिर उसे तथाकथित रूप से सुधारने का व्यवसाय ठगी का एक बहुत बड़ा जाल बन गया है। तंत्र-मंत्र, पूजा-पाठ, समस्या उपाय के समाधान के नाम पर लोग समय, पैसा और अपनी मानसिकता जमकर खराब कर रहे हैं। व्यवसायी ठग तरह-तरह के रूपों में आते हैं। कोई शनि महाराज के काले कपड़े पहनकर शनि की दशा ठीक करने का दावा करता है, तो कोई पाठ बिठाने का पैसा लेता है। नारियल, अगरबत्ती भी खुद ही बेच देता है। बड़े-बड़े पंडित टेलीविजन में एयरटाइम पा गए हैं या ज्योतिष की फाइव स्टार दुकानों में सेलिब्रिटीज का भाग्य बाँचते हैं। निश्चित ही वे केवल भाग बाँचकर नहीं रह जाते, 'स्टार' उनका स्थायी 'कस्टमर' हो जाता है और दाएँ मुड़ना भाग्य के लिए अच्छा है कि बाएँ मुड़ना उनसे पूछकर ही मुड़ता है। ये 'गद्गद्गुरु' जगत गुरु की पदवी भी ऑटोमेटिक ही पा जाते हैं साथ ही भोली जनता की भी श्रद्धा के केन्द्र हो जाते हैं, क्योंकि वे उनके रोल मॉडल के भी गुरु हैं। अत: बीच के दौर में पुरातनपंथी मानी जाने वाली यह विधा अब आधुनिक (?) मानी जाने लगी है। और चिकने पन्ने वाली अँगरेजी पत्रिकाओं से लेकर टीवी चैनल और अखबारों तक सारे माध्यम भाँति-भाँति के भविष्य वक्ताओं और भाँति-भाँति के भविष्यवाणी के तरीकों से भरे पड़े हैं, जिनमें यह तक बताया जाता है कि किसी राशि के व्यक्ति को क्या खाना चाहिए, कौन से रंग के वस्त्र पहनना चाहिए। शायद वे थोड़े दिन में यह भी बताने लगें कि किस राशि के व्यक्ति को किस डिजाइनर का डिजाइन किया वस्त्र पहनना शुभ रहेगा। तब शायद डिजाइनरों से भी उनका कमीशन बँध जाए!

कोई यह पूछ सकता है कि इसमें क्या नुकसान है? नुकसान यह है कि हम चिंतकों और समाज सुधारकों के बजाय बहुरूपियों और धंधेबाजों में गुरु और मार्गदर्शक ढूँढने लगे हैं। वे भी आपको ऐसी स्थिति में पकड़ते हैं, जब आप 'मरता क्या करता' वाले हालात में होते हैं और ग्रहदशा ठीक करने के नाम पर कुछ भी पैसा खर्च करते हैं। बाबाओं और तांत्रिकों के चक्कर में आकर लोग कुछ भी ऊलजलूल, उल्टा-सीधा करने को तैयार हो जाते हैं। बच्चों की बलि देने के किस्से भी हिन्दुस्तान में होते हैं, सिर्फ इसलिए कि किसी तांत्रिक ने बता दिया था। चौराहे पर टोटके रखना, कुत्ते को इमरती खिलाना,किसी का कुछ बिगाड़ने के लिए मूठ रखवाना जैसे अजीब और ईर्ष्यालु धंधे भी लोग इसी वजह से करते हैं। और सच तो यह है कि अपना भविष्य सुधारने के लिए कर्म करने के बजाय इन्हीं सब गोरखधंधों में लग जाते हैं। और हाँ, अपना अच्छा करने से ज्यादा चिंता इन्हें दूसरों का बुरा करने की होती है। यह सब अंधविश्वास, असुरक्षित मानसिकता, निकम्मेपन, मूर्खता, ठगी का एक ऐसा जाल है, जिसे तोड़ना आवश्यक है। तो क्यों पहली कड़ी में इन तथाकथित भविष्य वक्ताओं को ही लाया जाए,जिन्हें बोलने के पहले दस बार सोचना पड़े कि वे क्या बोल रहे हैं? जनता को तो भ्रमित मनोवस्था से निकलने की आवश्यकता है ही। हिन्दुस्तान को इस वक्त ज्ञान जागरूकता की आवश्यकता है, अंधविश्वास या भाग्य निर्भरता की नहीं। हमारा मूलमंत्र 'खुद पर भरोसा है' होना चाहिए 'पता नहीं भाग में क्या बदा है' होने की बजाय। हमें असुरक्षा की धुक-धुक नहीं, आत्मविश्वास की ऊर्जा चाहिए। समस्या समाधान की दिशा में कर्म ही काम आता है।

- निर्मला भुराड़‍िया

1 टिप्पणी:

  1. 200% correct, what you have written, but I would like to add my 2 cents.
    Future always entices men! We are always keen to know what will happen when, from a "siddh-pandit" or a stranger in your train compartment. Its just that we need to decide as till how far we believe in it, is it just for fun or we start working towards what the other person has said.
    And on the note of blind-faith, I believe its our weakness that we fall into this trap. I know a very close relative who never believed in all this black magic and always use to make fun when we use to see those advertisements to buy some stone that would keep us away from "buri-nazar" but as soon as that couple had a kid and sometime when the kid falls sick, besides all the medicines, they very willingly allows the elders to perform the ceremony of "nazar-utttarna". "Whats wrong to try in it and it actually works!!?" is what they say. Its just that they don't realize that its the first step towards the dark domain of blind-faith, slowly cat-crossing, sneezing at door step will creep into their life!
    For what I have seen, a person is very rational as long as in their youth, when they want to change the world and be a rebel. As they grow up and face life, they come across so many things that they don't have in control and deep inside they want "someone" to fix it and this is how it all begins.
    Human weakness --- directly linked to ---- unexplainable rituals.

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